अमेरिका के टैरिफ का बड़ा झटका: 1500 करोड़ का निर्यात अटका, हीरा दफ्तर सूने

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भारत–अमेरिका व्यापार रिश्तों में आई कड़वाहट अब जमीनी स्तर पर साफ़ दिखने लगी है। अमेरिका ने हाल ही में भारत से आने वाले अनेक उत्पादों पर कुल 50% आयात-शुल्क लगा दिया है। यह शुल्क पहले से लागू 25% “रिसिप्रोकल” ड्यूटी के ऊपर अतिरिक्त 25% पेनल्टी के तौर पर जोड़ा गया है, जिसका कारण अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को बताया है। इस फैसले ने भारतीय निर्यात को गहरी चोट दी है और कई सेक्टर में उत्पादन व ऑर्डर पर तात्कालिक असर दिखने लगा है।

उत्तर प्रदेश में 1500 करोड़ का निर्यात रुका

सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश को लगा है। कानपुर, भदोही और मिर्जापुर के औद्योगिक इलाकों से जुड़े लेदर, कालीन और टेक्सटाइल उद्योगों में लगभग ₹1,500 करोड़ के निर्यात ऑर्डर रोक दिए गए हैं। अमेरिकी डिमांड में अचानक आई गिरावट से कारोबारियों ने उत्पादन कम कर दिया है। कालीन उद्योग, जहां अमेरिका का हिस्सा लगभग 60% है, अब बड़े संकट से गुजर रहा है।

सूरत के हीरा दफ्तरों में सन्नाटा

गुजरात के सूरत शहर, जिसे दुनिया की हीरा नगरी कहा जाता है, पर भी बड़ा असर दिख रहा है। यहां के डायमंड दफ्तरों में ऑर्डर घटने लगे हैं और कई जगह कामकाज ठप होने के कारण ऑफिस खाली पड़े हैं। अमेरिकी बाजार में भारत के पॉलिश्ड हीरों की बड़ी हिस्सेदारी रही है, लेकिन अब कई कंपनियां ऑर्डर शिफ्ट होकर बोत्सवाना जैसे देशों में करने की सोच रही हैं, जहां शुल्क अपेक्षाकृत कम है।

गारमेंट और टेक्सटाइल पर सबसे बड़ा वार

अमेरिकी टैरिफ का सबसे गहरा असर टेक्सटाइल और रेडीमेड गारमेंट उद्योग पर पड़ा है। पहले जहां भारतीय परिधान पर अमेरिका में 9–13% शुल्क लगता था, अब यह बढ़कर करीब 63% तक पहुंच गया है। तिरुपुर, नोएडा, गुरुग्राम, बेंगलुरु, लुधियाना और जयपुर के क्लस्टर सीधे प्रभावित हो रहे हैं। इनकी जगह बांग्लादेश, वियतनाम और कंबोडिया जैसे देश अमेरिकी खरीदारों की पहली पसंद बन सकते हैं।

समुद्री उत्पाद और झींगा निर्यात पर खतरा

पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में झींगा उत्पादन करने वाले किसानों पर भी खतरे की तलवार लटक गई है। अमेरिका भारत के झींगा और सीफूड का सबसे बड़ा खरीदार है। अब 50% शुल्क के बाद भारतीय झींगे महंगे पड़ रहे हैं और किसानों से लेकर प्रोसेसिंग यूनिट तक सभी पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है।

कालीन, हस्तशिल्प और लेदर सेक्टर में संकट

भदोही, मिर्जापुर और श्रीनगर जैसे कालीन हब्स पर भी असर गहरा है। कालीन पर शुल्क बढ़कर 2.9% से 52% तक पहुंच गया है। वहीं कानपुर और आगरा के लेदर क्लस्टर तथा तमिलनाडु के अंबूर–रानीपेट के फुटवियर हब्स में भी निर्यात ऑर्डर तेजी से घटने की आशंका है।

अनुमानित असर कितना बड़ा?

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका को जाने वाले भारत के कुल निर्यात का लगभग 66% हिस्सा अब प्रभावित हो चुका है। अनुमान है कि 2025–26 में भारत का निर्यात $87 अरब से घटकर $50 अरब तक सिमट सकता है। यानी लगभग $35–40 अरब की सीधी गिरावट की संभावना है। इतना ही नहीं, इससे भारत की GDP वृद्धि दर में भी 0.5 से 1 प्रतिशत अंक तक की कमी आ सकती है।

उद्योग जगत और सरकार की चिंता

निर्यातकों और इंडस्ट्री बॉडीज़ ने केंद्र सरकार से तात्कालिक राहत की मांग की है। उनका कहना है कि छोटे उद्योग (MSMEs) सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। वे क्रेडिट–लिक्विडिटी सपोर्ट, ब्याज सब्सिडी, लॉजिस्टिक्स रियायत और वैकल्पिक बाजारों में मदद की अपील कर रहे हैं। दूसरी ओर, सरकार भी निर्यातकों को लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और मध्य–पूर्व जैसे नए बाजारों की ओर रुख करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

आगे की राह

स्पष्ट है कि अमेरिका के टैरिफ से भारत के श्रम-प्रधान सेक्टर पर सबसे ज्यादा दबाव आया है। हजारों नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है और कई उद्योग अपने ऑर्डर दूसरे देशों में शिफ्ट करने की सोच रहे हैं। अब भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपने निर्यात बाजारों को विविध बनाए और घरेलू उद्योग को तात्कालिक राहत देकर संकट को गहराने से रोके।

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