अफगान विदेश मंत्री की दिल्ली प्रेस कॉन्फ्रेंस बना विवाद का केंद्र, महिलाओं की एंट्री पर लगी रोक

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नई दिल्ली: अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को प्रवेश से रोकने की घटना ने देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विवाद खड़ा कर दिया है। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस 10 अक्टूबर 2025 को नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में आयोजित की गई थी, जिसमें केवल पुरुष पत्रकारों को ही आमंत्रित किया गया था। इस कदम ने महिलाओं के अधिकारों, पत्रकारिता की स्वतंत्रता और लैंगिक समानता के मुद्दों को उजागर कर दिया।

इससे पहले, विदेश मंत्री मुत्तकी ने भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ द्विपक्षीय मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की थी। बैठक के दौरान अफगान विदेश मंत्री ने भारत-अफगानिस्तान संबंधों, क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और कूटनीतिक सहयोग जैसे अहम विषयों पर बातचीत की। चर्चा के समापन के बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को प्रवेश न देने के फैसले ने मीडिया और राजनीतिक जगत में तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न कर दी।

इस घटना पर भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट किया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के आयोजन और पत्रकारों के चयन का निर्णय पूरी तरह अफगान अधिकारियों का था और भारतीय मंत्रालय की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। MEA ने अपने बयान में कहा कि भारत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किसी भी तरह के भेदभाव या प्रतिबंध का समर्थन नहीं किया। मंत्रालय ने इस मामले में अफगान अधिकारियों को समझाने और संवाद स्थापित करने की कोशिश की, ताकि भविष्य में समान स्थिति न बने।

राजनीतिक जगत में इस घटना पर तीव्र प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया कि महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर रखने की अनुमति क्यों दी गई और क्या भारत में महिला पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाया गया। उन्होंने इसे न केवल लैंगिक भेदभाव बल्कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता के प्रति गंभीर चुनौती बताया। इसी तरह, पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भी इस निर्णय की आलोचना की और इसे लैंगिक असमानता का गंभीर उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को इस तरह के भेदभावपूर्ण निर्णयों का सामना नहीं करना चाहिए और महिला पत्रकारों की पेशेवर गरिमा की रक्षा के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।

मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर व्यापक चर्चा हुई। कई पत्रकारों ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए इसे लैंगिक भेदभाव के रूप में देखा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हजारों उपयोगकर्ताओं ने इस घटना की निंदा की और महिला पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवाज़ उठाई। इस विवाद ने न केवल राजनीतिक दलों और मीडिया जगत में हलचल मचाई बल्कि सामान्य जनता में भी जागरूकता और चिंता बढ़ाई।

इस घटना ने अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति और उनकी पेशेवर स्वतंत्रता के मुद्दों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर कर दिया। अफगानिस्तान में महिला पत्रकारों और पेशेवर महिलाओं को अक्सर कई तरह की चुनौतियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और यह घटना उन सीमाओं को स्पष्ट रूप से सामने लाती है। भारत में आयोजित होने वाली इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को बाहर रखना न केवल उनके पेशेवर अधिकारों का हनन है बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह सोचने पर मजबूर करता है कि लोकतांत्रिक देशों में लैंगिक समानता और प्रेस की स्वतंत्रता को कितनी गंभीरता से लिया जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की घटनाएँ केवल एक प्रशासनिक या कूटनीतिक निर्णय तक सीमित नहीं रहतीं। इसका प्रभाव व्यापक होता है, जिससे मीडिया की निष्पक्षता और पत्रकारों की स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य ही जनता तक निष्पक्ष और सत्य जानकारी पहुँचाना है, और यदि किसी समूह को प्रवेश से रोका जाता है, तो यह पेशेवर मानदंडों के खिलाफ है। कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया विशेषज्ञों ने इस कदम को आलोचना की दृष्टि से देखा और इसे महिला पत्रकारों के अधिकारों के खिलाफ एक नकारात्मक उदाहरण बताया।

अफगान विदेश मंत्री की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की नो-एंट्री ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी हलचल पैदा की है। विभिन्न देशों के मानवाधिकार संगठन और महिला अधिकार संगठन इस घटना पर नज़र बनाए हुए हैं और उन्होंने अफगानिस्तान में महिला पत्रकारों के पेशेवर अधिकारों की सुरक्षा के लिए सतत प्रयास करने की अपील की है। वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए अफगान अधिकारियों से संवाद जारी रहेगा।

यह घटना एक गंभीर उदाहरण है कि कैसे लैंगिक भेदभाव और पेशेवर असमानता पत्रकारिता के क्षेत्र में दिखाई दे सकती है। पत्रकारिता में महिलाओं की उपस्थिति न केवल सूचनाओं के निष्पक्ष प्रसारण के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह समाज में लैंगिक समानता और न्याय की भावना को भी मजबूत करती है। भारत में आयोजित इस प्रेस कॉन्फ्रेंस ने यह दिखाया कि महिलाओं को समान अवसर प्रदान करना और उनके अधिकारों का सम्मान करना कितना आवश्यक है।

अंततः, अफगान विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को बाहर रखा जाना न केवल एक राजनीतिक और कूटनीतिक घटना थी, बल्कि यह महिलाओं के अधिकारों और पत्रकारिता की स्वतंत्रता के मुद्दों को भी उजागर करती है। यह घटना राजनीतिक दलों, मीडिया जगत और आम जनता के लिए सीखने का अवसर है कि लैंगिक समानता और पेशेवर स्वतंत्रता के प्रति सतत जागरूकता और समर्थन आवश्यक है। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा।

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