लिंगायत विवाद: मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान बन गया राजनीति का नया मुद्दा

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने को लेकर राजनीतिक और सामाजिक विवाद तेज हो गया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में कहा कि 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना ने लिंगायत धर्म की नींव रखी थी, जो हिंदू धर्म से अलग है। इस बयान के बाद कांग्रेस पार्टी में ही दो वरिष्ठ लिंगायत मंत्रियों, एमबी पाटिल और ईश्वर खांडेरे के बीच तीखी बयानबाजी शुरू हो गई। पाटिल ने लिंगायतों की अलग पहचान की वकालत की, जबकि खांडेरे ने समुदाय की एकता बनाए रखने की बात कही। इस आंतरिक विवाद ने विपक्षी भाजपा को भी सक्रिय कर दिया, जिसने मुख्यमंत्री पर हिंदू समाज में विभाजन की कोशिश करने का आरोप लगाया।

सिद्धारमैया ने पत्रकारों से बातचीत में स्पष्ट किया कि उनका इस मुद्दे पर कोई व्यक्तिगत रुख नहीं है और कहा कि लोगों द्वारा बताए गए धर्म के आधार पर ही रिकॉर्ड रखा जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ मठों के स्वामी इस मुद्दे पर सक्रिय हैं और यह विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। लिंगायत समुदाय ने वर्षों से अपनी अलग धार्मिक पहचान की मांग की है। हाल ही में अखिल भारतीय वीरशैव लिंगायत महासभा ने प्रस्ताव पारित किया, जिसमें लिंगायतों को हिंदू धर्म से अलग स्वतंत्र धर्म के रूप में मान्यता देने की बात कही गई। समाज सुधारक बसवन्ना के अनुयायी इस मांग को लेकर सक्रिय हैं और उनका तर्क है कि बसवन्ना ने जातिवाद के खिलाफ समान समाज की स्थापना की थी।

विपक्षी भाजपा ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक बसवराज बोम्मई ने आरोप लगाया कि सिद्धारमैया सरकार लिंगायत समुदाय को बांटने की कोशिश कर रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि बिना उचित अध्ययन के नए जातियों और उपजातियों को शामिल करना संविधान के खिलाफ है और यह हिंदू समाज में विभाजन की साजिश को बढ़ावा देता है। इसी बीच, लिंगायत मठाधीशों और समाज सुधारकों ने भी अपनी राय दी। शिरहट्टी मठ के दिंगलेश्वर स्वामी ने जाति जनगणना का विरोध करते हुए कहा कि यह लिंगायत समुदाय में विभाजन का कारण बन सकता है और लिंगायत तथा वीरशैव एक ही समुदाय हैं, जिन्हें अलग करने की कोशिश समाज की एकता को नुकसान पहुंचाएगी।

इस तरह लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा बन चुकी है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान इसे फिर से चर्चा में ला रहा है, जबकि राजनीतिक दलों, समाज सुधारकों और समुदाय के नेताओं के बीच इस पर मतभेद स्पष्ट हैं। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस मुद्दे पर किस दिशा में कदम उठाती हैं।

Leave a Comment

और पढ़ें