लद्दाख में हालिया हिंसा के बाद गिरफ्तार किए गए प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए उनकी पत्नी गीतांजलि जे. आंगमो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में पति की गिरफ्तारी को अनुचित बताते हुए रिहाई की मांग की है।
गौरतलब है कि 24 सितंबर को लेह में हुई झड़पों और हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई की और कई लोगों पर कड़ी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। इसी दौरान सोनम वांगचुक पर आरोप लगाया गया कि उनके भाषण और बयानों से हालात बिगड़े। इसी आधार पर केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) लागू कर दिया और उन्हें हिरासत में लेकर जोधपुर की केंद्रीय जेल भेज दिया गया।
गीतांजलि ने अपनी याचिका में कहा है कि सोनम वांगचुक पर NSA लगाना और उन्हें लंबे समय तक हिरासत में रखना पूरी तरह से अनुचित और गैर-कानूनी है। उनका आरोप है कि पुलिस और प्रशासन ने प्रक्रियागत खामियों को नजरअंदाज करते हुए उनके पति की आवाज़ दबाने की कोशिश की है। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में जनहित और पर्यावरण की रक्षा के मुद्दे उठाने वाले व्यक्तियों को इस तरह प्रताड़ित करना बेहद गलत है।
इस मामले ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बड़ी बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने वांगचुक की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। उनका कहना है कि यह कार्रवाई जनता की आवाज़ को दबाने की कोशिश है और सरकार को इस पर पारदर्शी रुख अपनाना चाहिए। वहीं, प्रशासन का कहना है कि हालात को काबू में रखने और हिंसा रोकने के लिए कड़े कदम उठाना जरूरी था।
अब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है। अदालत में अगली सुनवाई में केंद्र और प्रशासन अपना पक्ष रखेंगे, जबकि गीतांजलि की ओर से गिरफ्तारी को असंवैधानिक बताने वाले तर्क दिए जाएंगे। यदि अदालत प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाती है तो सोनम वांगचुक को अंतरिम राहत मिल सकती है, अन्यथा यह मामला विस्तृत जांच और सुनवाई के साथ आगे बढ़ेगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत सुरक्षा कानूनों के इस्तेमाल और नागरिक स्वतंत्रता के बीच किस तरह का संतुलन स्थापित करती है, क्योंकि यह फैसला न केवल सोनम वांगचुक बल्कि लद्दाख के आंदोलन और भविष्य की राजनीति पर भी दूरगामी असर डाल सकता है।
