सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की हवा को और प्रदूषणमुक्त बनाने के उद्देश्य से एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने उन वाणिज्यिक वाहनों को दी गई छूट समाप्त कर दी है, जो अब तक सब्जी, फल, दूध, अंडे और अन्य आवश्यक वस्तुएँ लेकर दिल्ली में प्रवेश करते समय पर्यावरण क्षतिपूर्ति उपकर (Environment Compensation Cess – ECC) देने से बचे हुए थे। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की तीन सदस्यीय पीठ ने यह आदेश सुनाते हुए कहा कि इस छूट को जारी रखना न तो व्यावहारिक है और न ही पर्यावरणीय दृष्टि से उचित।
दरअसल, वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने यात्री वाहनों, एम्बुलेंस और आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई करने वाले कुछ वाणिज्यिक वाहनों को ECC से छूट दी थी। लेकिन समय के साथ इस छूट ने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दीं। दिल्ली नगर निगम (MCD) ने अदालत को जानकारी दी कि सीमा पर यह तय करने की प्रक्रिया कि कौन-सा वाहन आवश्यक सामान ले जा रहा है और कौन नहीं, अत्यधिक समय लेने वाली होती है। वाहनों की पहचान और जांच में देरी के कारण लंबा जाम लगता है और उससे अतिरिक्त धुआँ निकलकर प्रदूषण और बढ़ा देता है। इसी तर्क के आधार पर शीर्ष अदालत ने माना कि छूट खत्म करना ही बेहतर उपाय है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण उपकर इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि उसका सीधा असर आम जनता पर पड़े। आदेश में कहा गया कि दिल्ली में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित न हो और न ही उनकी कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हो। अदालत ने प्रशासन को निर्देश दिया कि सीमा पर लगने वाले टोल और चेकपोस्ट की व्यवस्था को सरल बनाया जाए ताकि वाहनों को ज्यादा देर रुकना न पड़े और जाम की समस्या से भी निजात मिले।
इस आदेश का असर व्यापारियों और लॉजिस्टिक्स सेक्टर पर साफ दिखाई देगा। अब सब्जी, फल, दूध और अन्य जरूरी सामान लेकर आने वाले ट्रक और वैन ऑपरेटरों को अतिरिक्त शुल्क देना होगा। इससे उनकी लागत बढ़ेगी और आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव पड़ सकता है। छोटे व्यापारी और खुदरा विक्रेता इसे लेकर असहज हो सकते हैं, क्योंकि मार्जिन पहले से ही कम होता है। हालांकि प्रशासन का मानना है कि नियमों के सख्त पालन से सीमा पर वाहनों के रुकने-जाम में कमी आएगी और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
आने वाले दिनों में राज्य सरकार, दिल्ली प्रशासन और नगर निगम मिलकर इस आदेश को लागू करने के लिए नई कार्ययोजना तैयार करेंगे। इसमें यह देखा जाएगा कि शुल्क की दरें कितनी हों और वाहनों के निरीक्षण की प्रक्रिया किस तरह आसान की जाए। अदालत ने यह भी साफ किया कि लागू होने वाले नियम तर्कसंगत होने चाहिए और जरूरत पड़ने पर कुछ राहतें भी दी जा सकती हैं, ताकि किसी भी आवश्यक वस्तु की सप्लाई बाधित न हो।
कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट का यह कदम दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में एक और प्रयास है। हालांकि शुरुआती दौर में इससे व्यापारी वर्ग और उपभोक्ताओं पर असर दिख सकता है, लेकिन अदालत का स्पष्ट संदेश है कि नीति का उद्देश्य आम जनता पर बोझ डालना नहीं, बल्कि राजधानी की हवा को स्वच्छ बनाना है।
