नई दिल्ली/दरभंगा—केंद्र सरकार ने हाल ही में ‘राष्ट्रीय मखाना बोर्ड’ की स्थापना का नोटिफिकेशन जारी किया है। हालांकि, इस नाम को लेकर मिथिला और मैथिली के बुद्धिजीवियों व संगठनों के बीच गहरी असहमति सामने आई है। उनका कहना है कि सही शब्द “मखान” है, न कि “मखाना”।
मैथिली भाषा और संस्कृति के जानकारों का मानना है कि यह मुद्दा केवल भाषा-शुद्धि का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पहचान से भी गहराई से जुड़ा है। मिथिला की परंपरा में पीढ़ियों से इस विशेष उत्पाद को “मखान” कहा जाता रहा है। ऐसे में सरकारी बोर्ड के नाम में “मखाना” शब्द का इस्तेमाल, स्थानीय पहचान को दरकिनार करने जैसा माना जा रहा है।
विद्वानों और सामाजिक संगठनों का सुझाव है कि मिथिला की सांस्कृतिक अस्मिता को सम्मान देने के लिए बोर्ड का नाम बदलकर “राष्ट्रीय मखान बोर्ड” किया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को लिखित रूप में ज्ञापन सौंपने की तैयारी चल रही है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस मुद्दे को व्यापक रूप से उठाने के लिए स्थानीय अख़बारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर “मखान” शब्द का प्रयोग लगातार किया जाना चाहिए। इससे न केवल सही शब्द प्रचलित होगा बल्कि सरकार पर दबाव भी बनेगा।
मिथिला क्षेत्र के लोग अब उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे को समझते हुए नाम में बदलाव करेगी, ताकि मखान को उसकी असली पहचान और सम्मान मिल सके।
