तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) प्रमुख एम.के. स्टालिन के बिहार दौरे ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में शामिल होने के लिए स्टालिन बिहार पहुँचे और राहुल गांधी के साथ मंच साझा किया। इस दौरान उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों और मताधिकार की रक्षा पर जोर दिया। लेकिन उनके इस दौरे को लेकर भाजपा ने तीखा रुख अपनाया और महागठबंधन को घेरने का प्रयास किया।
भाजपा का आरोप — “बिहारियों का मज़ाक उड़ाने वालों को बुलाया गया”
भाजपा नेताओं ने स्टालिन की मौजूदगी को विवाद का मुद्दा बना दिया। पार्टी ने आरोप लगाया कि महागठबंधन ने ऐसे नेताओं को बिहार बुलाया है जिनकी पार्टी या सहयोगी पहले बिहारियों को लेकर अपमानजनक टिप्पणी कर चुके हैं। भाजपा ने इन बयानों का एक वीडियो संकलन साझा करते हुए कहा कि महागठबंधन ने राज्यवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है।
भाजपा प्रवक्ताओं ने यह भी मांग की कि स्टालिन बिहार की जनता से माफी माँगें और स्पष्ट करें कि वह उन बयानों से सहमत हैं या नहीं।
पृष्ठभूमि — पुराने बयानों को लेकर फिर गरमा रहा माहौल
भाजपा जिन बयानों का हवाला दे रही है, वे अतीत में DMK या उसके नेताओं द्वारा दिए गए कथित विवादास्पद वक्तव्य हैं। इनमें बिहार और उत्तर भारत के प्रवासी मजदूरों का उपहास करने जैसे आरोप लगाए जाते रहे हैं। हालांकि, विपक्षी खेमे का कहना है कि इन बयानों को तोड़-मरोड़कर चुनावी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
महागठबंधन का पक्ष — “लोकतंत्र और मताधिकार की लड़ाई”
महागठबंधन की ओर से कहा गया कि स्टालिन की मौजूदगी विपक्षी एकजुटता का प्रतीक है। कांग्रेस और सहयोगी दलों का दावा है कि ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का उद्देश्य जनता को जागरूक करना और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना है।
राहुल गांधी ने रैली में कहा कि विपक्ष का यह अभियान “वोट चोरी” और “चुनावी प्रक्रियाओं में धांधली” के खिलाफ है। वहीं स्टालिन ने मतदाताओं से अपील की कि वे लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करें।
राजनीतिक महत्व — चुनावी जमीन पर असर
बिहार में विधानसभा चुनाव धीरे-धीरे नजदीक आ रहे हैं। ऐसे में स्टालिन का बिहार आना महागठबंधन के लिए विपक्षी एकता का प्रदर्शन है। वहीं भाजपा इस दौरे को स्थानीय भावनाओं से जोड़कर महागठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर बयानबाजी और तेज होगी। एक तरफ भाजपा “बिहारियों के सम्मान” का मुद्दा उठाकर चुनावी लाभ लेने की कोशिश करेगी, वहीं महागठबंधन इसे “लोकतंत्र बचाने की लड़ाई” के रूप में पेश करेगा।
निष्कर्ष
एम.के. स्टालिन का बिहार दौरा केवल एक राजनीतिक यात्रा नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा बन गया है। भाजपा इसे बिहारियों के सम्मान से जोड़ रही है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र की रक्षा की कवायद बता रहा है। इस बहस ने बिहार की राजनीति में नया रंग भर दिया है और आने वाले समय में यह चुनावी नैरेटिव को और तीखा कर सकता है।
