लिपुलेख दर्रा विवाद: भारत-चीन व्यापार समझौते पर नेपाल की आपत्ति, विदेश मंत्रालय ने जताई कड़ी नाराज़गी

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नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से सीमा-व्यापार शुरू करने के फैसले ने एक बार फिर नेपाल के साथ विवाद को जन्म दे दिया है। नेपाल ने इसे अपनी संप्रभु भूमि बताते हुए ऐतराज जताया, जबकि भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने नेपाल की आपत्ति को निराधार और ऐतिहासिक तथ्यों से परे बताया है।

क्या है लिपुलेख दर्रा?

लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है और भारत, चीन (तिब्बत) तथा नेपाल की सीमाओं के नज़दीक पड़ता है। यह मार्ग सदियों से कैलाश–मानसरोवर यात्रा और सीमावर्ती व्यापार का अहम केंद्र रहा है। 1954 के भारत-चीन समझौते और बाद की व्यवस्थाओं में भी इस मार्ग का उल्लेख मिलता है।

हालिया घटनाक्रम

भारत और चीन ने हाल ही में घोषणा की कि लिपुलेख सहित तीन पारंपरिक मार्गों से सीमा-व्यापार को फिर से खोला जाएगा। इसका उद्देश्य स्थानीय व्यापारियों और कैलाश-मानसरोवर यात्रा से जुड़े लोगों को लाभ पहुंचाना है। व्यापारी लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे क्योंकि कारोबारी सीज़न में उनका माल तिब्बत में फंसा हुआ था।

नेपाल की आपत्ति

नेपाल सरकार ने इस फैसले पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा उसके संवैधानिक मानचित्र का हिस्सा हैं। काठमांडू ने तर्क दिया कि भारत और चीन इस क्षेत्र से जुड़े किसी भी निर्णय पर नेपाल की सहमति के बिना आगे नहीं बढ़ सकते। नेपाल ने 2020 में नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया था जिसमें इन इलाकों को अपनी सीमा में दर्शाया गया है।

भारत की प्रतिक्रिया

भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल की आपत्ति को अस्वीकार कर दिया। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि नेपाल का दावा ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित नहीं है। भारत ने कहा कि लिपुलेख दर्रे से व्यापार और तीर्थयात्रा प्राचीन काल से होती रही है और 1954 के समझौतों में भी इसका उल्लेख है। MEA के अनुसार, नेपाल की एकतरफा मानचित्र-विस्तार की नीति स्वीकार्य नहीं है।

विवाद की पृष्ठभूमि

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से यह क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है।

2020 में नेपाल द्वारा नया मानचित्र जारी करने के बाद विवाद ने और तूल पकड़ा।

यह इलाका भारत-नेपाल संबंधों में कई बार तनाव का कारण बन चुका है।

असर और आगे की राह

इस विवाद से भारत-नेपाल संबंधों में कूटनीतिक तनाव बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि तीनों देशों के बीच इस संवेदनशील क्षेत्र को लेकर संतुलित संवाद की आवश्यकता है। वहीं स्थानीय व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के लिए लिपुलेख से मार्ग खोलना राहत का कदम साबित हो सकता है।

निष्कर्ष:

लिपुलेख दर्रे का मुद्दा केवल भू-सीमा विवाद नहीं बल्कि भारत-नेपाल-चीन की त्रिकोणीय राजनीति और स्थानीय हितों से जुड़ा विषय है। भारत-चीन की हालिया पहल और नेपाल की कड़ी प्रतिक्रिया ने इस मामले को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। आने वाले दिनों में इस विवाद का समाधान कूटनीतिक संवाद और सहयोग पर ही निर्भर करेगा।

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