पश्चिम बंगाल की राजनीति में सोमवार को बड़ा विवाद उस समय खड़ा हो गया जब कोलकाता के ऐतिहासिक मैदान इलाके में गांधी प्रतिमा के पास तृणमूल कांग्रेस द्वारा लगाए गए विरोध-स्टेज को सेना ने हटा दिया। यह मंच मजदूरों और प्रवासी मुद्दों को लेकर चल रहे विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा था।
मंच हटाने की कार्रवाई
स्थानीय सैन्य प्राधिकरण के अनुसार, मैदान पर आयोजनों के लिए अधिकतम दो दिनों की अनुमति दी जाती है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस का यह मंच कई सप्ताह से लगातार खड़ा था। सेना ने कहा कि आयोजकों को बार-बार चेतावनी दी गई थी, लेकिन जवाब न मिलने पर पुलिस को सूचित करने के बाद कार्रवाई करनी पड़ी।
ममता बनर्जी का कड़ा रुख
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कदम को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने सेना को राजनीतिक दबाव में ऐसा करने के लिए मजबूर किया। ममता ने कहा, “सेना को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन उसे राजनीतिक मकसद के लिए इस्तेमाल करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।” उन्होंने केंद्र और भाजपा पर ‘राजनीतिक बदले की कार्रवाई’ करने का आरोप भी लगाया।
सेना की सफाई
सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह कार्रवाई किसी राजनीतिक दबाव में नहीं बल्कि नियमों के तहत की गई। सेना ने स्पष्ट किया कि लंबे समय तक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए रक्षा मंत्रालय से अलग अनुमति जरूरी होती है और नियमों के उल्लंघन की वजह से ही मंच हटाया गया।
राजनीतिक माहौल में गर्मी
इस घटना के बाद राज्य की राजनीति में गर्माहट आ गई है। तृणमूल कांग्रेस ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया और प्रदर्शन जारी रखने का एलान किया। वहीं, भाजपा और अन्य विपक्षी दलों की ओर से भी बयानबाज़ी शुरू हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला आने वाले दिनों में केंद्र और राज्य के टकराव का नया प्रतीक बन सकता है।
बड़ा सवाल
घटना ने एक बार फिर यह बहस तेज कर दी है कि विरोध-प्रदर्शन और नागरिक अधिकारों की रक्षा के बीच संस्थाओं की भूमिका कहां तक होनी चाहिए। क्या यह केवल प्रशासनिक नियमों का पालन है या फिर राजनीतिक दबाव में उठाया गया कदम — यही अब राजनीति और कानूनी बहस का मुख्य मुद्दा रहेगा।
