नई दिल्ली। संसद में हाल ही में पेश किया गया संविधान (एक सौ तीसवाँ संशोधन) विधेयक, 2025 राजनीतिक हलकों में सबसे बड़ा विवाद बन चुका है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत इस विधेयक को सरकार “राजनीतिक नैतिकता और जवाबदेही” का कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे “संविधान पर हमला” और “विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने की कोशिश” करार दे रहा है।
विधेयक में क्या है खास?
सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन का प्रस्ताव दिया है। इसके तहत यदि कोई मंत्री — चाहे केंद्र का हो या राज्य का — किसी ऐसे मामले में आरोपित हो जिसमें 5 वर्ष या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है और वह 30 दिनों से अधिक न्यायिक हिरासत में रहे, तो उसे मंत्री पद से हटाया जा सकेगा। सरकार का दावा है कि इससे सत्ता में बैठे नेताओं पर नैतिक दबाव बनेगा और जनता का विश्वास बढ़ेगा।
विपक्ष का रुख
विपक्षी दलों ने इस बिल का जोरदार विरोध किया है। उनका कहना है कि यह प्रावधान “दोषसिद्धि से पहले ही सज़ा देने जैसा है।” विपक्षी नेताओं का आरोप है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों के जरिये राजनीतिक विरोधियों को फँसाकर उन्हें पद से हटाने का रास्ता आसान करना चाहती है। तृणमूल कांग्रेस, आप और समाजवादी पार्टी ने पहले ही इस मुद्दे पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से दूरी बनाने का ऐलान कर दिया है, वहीं कांग्रेस भी सहयोगी दलों के दबाव में असमंजस में है।
JPC की राह और बहिष्कार की रणनीति
लोकसभा में विधेयक पेश होने के बाद उसे JPC को भेज दिया गया है, ताकि गहन अध्ययन हो सके। लेकिन विपक्ष का मानना है कि JPC केवल “दिखावा” है, क्योंकि सरकार के पास संख्याबल है और समिति की सिफारिश बाध्यकारी नहीं होती। ऐसे में विपक्षी दलों ने बहिष्कार और सड़क से सदन तक आंदोलन का संकेत दिया है।
विशेषज्ञों की राय
संवैधानिक विशेषज्ञों और विधि विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक कई बुनियादी सवाल खड़ा करता है—
न्यायिक हिरासत ≠ दोषसिद्धि: किसी मंत्री को केवल हिरासत के आधार पर हटाना “न्याय के मूल सिद्धांत” के खिलाफ हो सकता है।
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: अनुच्छेद 14 (समानता) और 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के उल्लंघन की आशंका है।
संघीय ढांचे पर असर: यदि राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों पर केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से असर पड़े तो यह संघवाद पर प्रहार माना जाएगा।
राजनीतिक निहितार्थ
विश्लेषकों का मानना है कि NDA सरकार इस विधेयक के जरिए दोहरा मकसद साधना चाहती है —
1. जनता के सामने भ्रष्टाचार के खिलाफ “कठोर रुख” दिखाना।
2. विपक्षी गठबंधन INDIA और क्षेत्रीय दलों पर राजनीतिक दबाव बनाना।
वहीं विपक्ष इसे NDA का हताश दांव बता रहा है और दावा कर रहा है कि यह कदम लोकतांत्रिक परंपराओं को कमजोर करेगा।
आगे का रास्ता
JPC की रिपोर्ट आने में समय लगेगा, लेकिन अंतिम फैसला संसद के बहुमत पर निर्भर करेगा।
यदि बिल पारित होता है, तो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाना तय माना जा रहा है।
राजनीतिक स्तर पर विपक्ष ने इसे एकजुट होने का मौका बना लिया है, जिससे आने वाले महीनों में टकराव और तेज़ होने के आसार हैं।
निष्कर्ष
130वाँ संविधान संशोधन विधेयक अपने आप में एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक विवाद खड़ा कर चुका है। सरकार इसे सुधार और विपक्ष इसे साजिश बता रहा है। सच्चाई यह है कि आने वाले समय में यह विधेयक न केवल संसद, बल्कि अदालतों और सड़कों पर भी देश की राजनीति का सबसे अहम मुद्दा बनने वाला है।
