अंतरिक्ष के बाद अब समुद्र की गहराई में भारत का इतिहास रचने की तैयारी

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नई दिल्ली, 15 अगस्त 2025अंतरिक्ष में ‘गगनयान’ मिशन की सफलता की दिशा में बढ़ते भारत ने अब महासागर की गहराइयों में भी कदम रख दिया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के डीप ओशन मिशन के तहत देश पहली बार 6,000 मीटर की गहराई तक मानवयुक्त पनडुब्बी ‘मत्स्य-6000’ भेजने की तैयारी कर रहा है। यह मिशन न केवल विज्ञान और तकनीक का नया अध्याय लिखेगा, बल्कि समुद्र की गोद में छिपे भारत के प्राचीन इतिहास के रहस्यों से भी पर्दा उठाएगा।

5,000 मीटर तक की ऐतिहासिक डाइव – 6,000 मीटर की ओर कदम

हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों और एक्वानॉट्स की टीम ने उत्तरी अटलांटिक महासागर में लगभग 5,000 मीटर की गहराई तक मानवीय गोताखोरी कर इतिहास रच दिया। यह परीक्षण आने वाले वर्षों में 6,000 मीटर तक की यात्रा के लिए तकनीकी और मानवीय क्षमता को परखने का अहम चरण था।

पनडुब्बी में सवार वैज्ञानिकों ने न केवल गहराई में दबाव, तापमान और प्रकाश की चुनौती का सामना किया, बल्कि आवश्यक जीवन-समर्थन प्रणालियों की भी रियल-टाइम जांच की।

तकनीकी उपलब्धियां – ‘मत्स्य-6000’ का निर्माण

‘मत्स्य-6000’ को खासतौर पर इस मिशन के लिए डिजाइन किया गया है। इसमें उपयोग होने वाला टाइटेनियम मिश्रधातु (Ti-6Al-4V ELI) का गोलाकार क्रू पॉड 2.26 मीटर व्यास और लगभग 80 मिमी मोटाई का है, जो समुद्र में लगभग 600 बार बाहरी दबाव सहने में सक्षम है।

क्रू पॉड की वेल्डिंग: उच्च-परिशुद्धता इलेक्ट्रॉन-बीम वेल्डिंग तकनीक से निर्माण कार्य पूरा।

अंडरवॉटर कम्युनिकेशन: केरल के इदुक्की बांध में 5.5 किमी दूरी तक ‘हाइड्रोफोन आधारित अंडरवॉटर टेलीफोन’ का सफल परीक्षण, ताकि पनडुब्बी और सतह पर मौजूद जहाज के बीच संवाद निर्बाध रहे।

जीवन-समर्थन प्रणाली: ऑक्सीजन आपूर्ति, कार्बन डाइऑक्साइड नियंत्रण, थ्रस्टर और आपातकालीन उछाल जैसी प्रणालियों का अलग-अलग परीक्षण पूरा।

समुद्र के साथ भारत का प्राचीन रिश्ता – पुरातत्व में नई खोज

यह मिशन केवल तकनीकी अन्वेषण नहीं, बल्कि भारत की समुद्री धरोहर को फिर से सामने लाने का भी माध्यम है।

द्वारका समुद्री खोज: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने द्वारका तट के पास समुद्र-तल पर संभावित पुरास्थलों की पहचान की है। हाल के सोनार स्कैन में बंदरगाह जैसे ढांचे और प्राचीन एंकरों के संकेत मिले हैं। सर्दियों में यहां विस्तृत उत्खनन और वैज्ञानिक डेटिंग की योजना है।

लोथल राष्ट्रीय समुद्री धरोहर परिसर: सिंधु-सरस्वती सभ्यता से लेकर आधुनिक नौवहन तक भारत की समुद्री यात्रा को प्रदर्शित करने के लिए यह परिसर तैयार किया जा रहा है, जहां इंटरएक्टिव डिस्प्ले, डिजिटल रीकंस्ट्रक्शन और पुरातात्विक नमूने रखे जाएंगे।

मिशन के बहुआयामी लाभ

1. वैज्ञानिक शोध: गहरे समुद्री पारितंत्र, सूक्ष्मजीव और हाइड्रोथर्मल वेंट्स के बारे में नई जानकारी।

2. खनिज और संसाधन मानचित्रण: बहुधात्विक गाँठें, कोबाल्ट-समृद्ध क्रस्ट जैसे खनिजों की जिम्मेदार पहचान और आकलन।

3. पुरातत्व संरक्षण: समुद्र-तल के प्राचीन स्थलों का वैज्ञानिक अध्ययन और डिजिटल अभिलेखन।

4. उद्योग और कौशल विकास: गहरे समुद्री रोबोटिक्स, उन्नत सामग्री विज्ञान और अंडरवॉटर सर्वे तकनीक में घरेलू क्षमताओं का विस्तार।

बजट और समय-सीमा

कुल लागत: ₹4,077 करोड़

2025–26 का आवंटन: लगभग ₹600 करोड़

मुख्य लक्ष्य: 2027 के अंत तक 6,000 मीटर की मानवीय डाइव को सफलतापूर्वक अंजाम देना।

आगे की राह

2026 में ‘मत्स्य-6000’ का इंटीग्रेटेड सी-ट्रायल होगा, जिसमें नेविगेशन, संचार, पोजिशनिंग और जीवन-समर्थन प्रणालियों का एंड-टू-एंड परीक्षण किया जाएगा। इसके बाद 2027 में मानवयुक्त गहरे समुद्र अभियान के साथ भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जिनके पास यह क्षमता है।

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