चीन ने भारतीय दवाओं पर हटाया 30% शुल्क, अमेरिकी टैरिफ संकट के बीच खोला नया रास्ता

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अंतरराष्ट्रीय व्यापार और दवा उद्योग से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दवा उत्पादों पर 100% तक आयात शुल्क लगाने की घोषणा के तुरंत बाद चीन ने भारतीय दवाओं पर लागू 30% आयात शुल्क पूरी तरह से समाप्त करने का फैसला किया है। भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन अब भारतीय फार्मा आयात पर शून्य शुल्क लेगा, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाज़ारों में से एक तक पहुंच आसान हो सकती है।

अमेरिका की नई टैरिफ नीति ने वैश्विक स्तर पर हलचल मचा दी है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यह कदम अमेरिकी दवा उद्योग की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इससे आयातित दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा। दूसरी ओर, इसका सीधा झटका भारत जैसे देशों की फार्मा कंपनियों को लग सकता है, जो अमेरिकी बाज़ार पर काफी निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, भारत हर साल अमेरिका को करीब $8–10 अरब डॉलर के जेनेरिक दवाओं का निर्यात करता है।

इसी बीच चीन का निर्णय भारत के लिए अवसर लेकर आया है। चीन की स्वास्थ्य सेवाओं का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और वहां जेनेरिक दवाओं की भारी मांग है। चीन की दवा उद्योग अब भी महंगी पेटेंटेड दवाओं पर निर्भर है, ऐसे में भारतीय जेनेरिक कंपनियों के लिए यह मौका गेम-चेंजर साबित हो सकता है। अनुमान है कि अगर शुल्क में यह कटौती स्थायी रूप से लागू होती है तो भारतीय फार्मा कंपनियों को अरबों डॉलर का अतिरिक्त निर्यात लाभ मिल सकता है।

हालांकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। चीनी बाजार में प्रवेश के लिए कठोर नियामक मानकों, लोकल पार्टनरशिप, भाषा और वितरण व्यवस्था जैसी अड़चनें सामने आती रही हैं। साथ ही, चीन की ओर से अभी तक आधिकारिक सरकारी अधिसूचना का सीमित प्रमाण ही उपलब्ध है, इसलिए उद्योग जगत औपचारिक घोषणा का इंतजार कर रहा है।

भारतीय उद्योग संगठनों और व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारत-चीन व्यापार संबंधों के लिए भी अहम साबित हो सकता है। चीन फिलहाल भारत से API (Active Pharmaceutical Ingredients) यानी दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे पदार्थ का बड़ा आयातक है। अब यदि तैयार दवाओं के लिए भी शुल्क हटाया जाता है, तो दोनों देशों के बीच दवा व्यापार का दायरा और बढ़ सकता है।

सारांश यह कि अमेरिकी टैरिफ से जहां भारत की फार्मा कंपनियों पर दबाव बढ़ा है, वहीं चीन का यह कदम एक वैकल्पिक और बड़ा अवसर खोल सकता है। अगर यह नीति लंबे समय तक लागू रहती है तो भारत अपने फार्मा निर्यात को विविध कर सकेगा और अमेरिका पर निर्भरता घटाकर चीन, एशिया और अफ्रीकी बाजारों में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है।

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