लेह में हालिया हिंसा के बाद पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में बड़ा कदम उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अदालत ने वांगचुक की तत्काल रिहाई की मांग पर कोई अंतरिम राहत देने से इनकार किया है, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सूचीबद्ध कर आगे की सुनवाई के लिए तय किया है।
यह याचिका वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने दायर की है, जिसमें उन्होंने एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) के तहत उनके पति की हिरासत को असंवैधानिक बताया है। याचिका में कहा गया है कि सोनम वांगचुक को गलत तरीके से गिरफ्तार कर जोधपुर के केंद्रीय जेल में रखा गया है। उनका कहना है कि वांगचुक लेह में शांति और लोकतांत्रिक तरीकों से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन सरकार ने उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में हिरासत में लिया, जो संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन का पक्ष है कि वांगचुक की गिरफ्तारी लेह में हाल ही में हुई हिंसक झड़पों के बाद सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई थी। प्रशासन ने दावा किया कि उनकी गतिविधियाँ क्षेत्र में तनाव को बढ़ा सकती थीं, इसलिए सुरक्षा कानूनों के तहत यह कार्रवाई आवश्यक थी। गौरतलब है कि लेह में हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़कने से चार लोगों की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस पर कोई अंतिम टिप्पणी नहीं की है, लेकिन केंद्र और लद्दाख प्रशासन से विस्तृत जवाब मांगा है। अदालत ने यह भी कहा है कि वह एनएसए के तहत की गई गिरफ्तारी की वैधता और प्रक्रियागत पहलुओं की बारीकी से जांच करेगी। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सभी पक्षों को सुने बिना कोई राहत देना उचित नहीं होगा। अब मामले की अगली सुनवाई में यह देखा जाएगा कि क्या वांगचुक की गिरफ्तारी विधि सम्मत थी या इसमें किसी प्रकार की प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।
यह मामला लद्दाख में तेजी से बदलते सामाजिक और राजनीतिक माहौल के बीच बेहद अहम माना जा रहा है। एक ओर वांगचुक के समर्थक इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बता रहे हैं, वहीं सरकार का कहना है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला न केवल वांगचुक की रिहाई बल्कि लद्दाख में नागरिक अधिकारों और प्रशासनिक कार्रवाई के संतुलन को लेकर भी दिशा तय कर सकता है।
