सीडीएस जनरल अनिल चौहान: भविष्य में परमाणु और जैविक हमलों के खिलाफ सतर्कता व तैयारी जरूरी

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Chief of Defence Staff (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने देश को बदलते वैश्विक और क्षेत्रीय खतरों के प्रति आगाह करते हुए कहा है कि हमें आने वाले समय में परमाणु और जैविक हमलों जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने यह संदेश मिलिटरी नर्सिंग सर्विस की 100वीं रेज़िंग-डे के वैज्ञानिक सत्र के दौरान दिया, जहाँ उन्होंने सैन्य चिकित्सा और नर्सिंग समुदाय की अहमियत पर विशेष बल दिया।

जनरल चौहान ने कहा कि भले ही प्रत्यक्ष रूप से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हमारे सामने तत्कालीन खतरे के रूप में न दिखे, लेकिन सुरक्षा नीति और सैन्य तैयारियों में इसे शामिल करना अनिवार्य है। उनके अनुसार, परमाणु व रेडियोलॉजिकल हमलों की स्थिति में केवल आपातकालीन प्रतिक्रिया काफी नहीं होगी, बल्कि नियमित प्रशिक्षण और उपचार-प्रोटोकॉल तैयार करना जरूरी है। उन्होंने समझाया कि रेडियोलॉजिकल संदूषण और जैविक हमलों में सामान्य युद्धकालीन घायलों से अलग प्रकार की चिकित्सा, डीकॉंटैमिनेशन प्रक्रियाएँ और दीर्घकालिक स्वास्थ्य निगरानी की जरूरत पड़ती है।

सीडीएस ने स्पष्ट किया कि ऐसी तैयारियाँ केवल प्रतिक्रिया का हिस्सा नहीं, बल्कि आक्रामक पक्ष पर मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक प्रभाव डालने का भी माध्यम होती हैं। यदि कोई देश देखता है कि भारत परमाणु और जैविक खतरों से निपटने में सक्षम है, तो वह इन विकल्पों का इस्तेमाल करने से पहले कई बार सोचने को मजबूर होगा। यही तैयारी ‘deterrence’ यानी रोकथाम का काम करती है।

अपने संबोधन में जनरल चौहान ने यह भी बताया कि आधुनिक युद्ध बहुआयामी होते जा रहे हैं। अब युद्ध सिर्फ पारंपरिक हथियारों से नहीं लड़े जाएंगे, बल्कि जैविक हथियारों, रेडियोलॉजिकल खतरों, साइबर हमलों और ड्रोन जैसी तकनीकों की भी निर्णायक भूमिका होगी। ऐसे हालात में तीनों सेनाओं — थल, जल और वायु — के बीच गहन समन्वय और स्वास्थ्य सेवाओं का मजबूत नेटवर्क बेहद जरूरी है। उन्होंने मिलिटरी नर्सिंग सर्विस की तारीफ करते हुए कहा कि किसी भी आपदा या युद्धकालीन स्थिति में नर्सिंग और चिकित्सा सेवाएँ ही असली जीवनरक्षक साबित होती हैं।

चौहान ने हाल के अभियानों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि भारत किसी भी प्रकार के “परमाणु ब्लैकमेल” के आगे झुकने वाला नहीं है। उन्होंने प्रधानमंत्री के हालिया बयान का समर्थन करते हुए कहा कि इस नीति को कारगर बनाने के लिए वास्तविक तैयारियों और सुदृढ़ रणनीति की आवश्यकता है।

इसके साथ ही सीडीएस ने तकनीकी बदलावों और भविष्य के युद्ध परिदृश्यों पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन टेक्नोलॉजी और छोटे, लेकिन सटीक हथियार भविष्य के युद्धों को प्रभावित करेंगे। ऐसे में केवल सैन्य हथियारों का आधुनिकीकरण ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं, आपदा प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य को भी इन खतरों के अनुसार तैयार करना होगा।

नर्सिंग और चिकित्सा समुदाय पर विशेष जोर देते हुए जनरल चौहान ने कहा कि परमाणु और जैविक घटनाओं में केवल दवाओं और उपचार से काम नहीं चलेगा। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता, दीर्घकालिक निगरानी और संसाधनों की निरंतर उपलब्धता भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रोटोकॉल का अभ्यास और तैयारी समय रहते कर ली जाए तो आपदा की स्थिति में होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

अपने भाषण के अंत में सीडीएस ने संदेश दिया कि सुरक्षा केवल सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं है। यह स्वास्थ्य सुरक्षा, तकनीकी क्षमता, प्रशिक्षण और आपदा प्रबंधन के संयुक्त प्रयासों से ही संभव है। उन्होंने मिलिटरी नर्सिंग सर्विस और चिकित्सा समुदाय से अपील की कि वे क्लिनिकल कौशल के साथ-साथ रेडियोलॉजिकल और जैविक खतरों से निपटने के लिए लगातार अभ्यास करते रहें, क्योंकि भविष्य की लड़ाई के लिए तैयारियों की शुरुआत आज से ही करनी होगी।

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