लद्दाख में बवाल: छठी अनुसूची की मांग पर आंदोलन हिंसक, आगजनी-पथराव और फायरिंग में मचे हड़कंप

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

लद्दाख के लेह शहर में छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर हुआ आंदोलन अचानक हिंसक हो गया। शांतिपूर्ण रैली के रूप में शुरू हुए प्रदर्शन ने जल्द ही उग्र रूप ले लिया। प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ और आगजनी की, भाजपा कार्यालय सहित कई जगहों को नुकसान पहुंचाया और वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया। पुलिस और सुरक्षाबलों पर पथराव हुआ, जिसके बाद भीड़ को काबू करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े गए और लाठीचार्ज किया गया। हालात बिगड़ने पर सुरक्षाबलों को फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें कई लोगों की मौत और दर्जनों घायल होने की खबरें सामने आईं। स्थिति नियंत्रण से बाहर होती देख प्रशासन ने कर्फ्यू लागू कर दिया और सार्वजनिक सभाओं पर रोक के साथ इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दीं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस हिंसा के पीछे लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक और संवैधानिक मांगें मुख्य कारण हैं। लद्दाख के लोग केन्द्रशासित प्रदेश की स्थिति से असंतुष्ट हैं और वे राज्य का दर्जा चाहते हैं, ताकि प्रशासनिक और विधायी शक्तियां उनके स्थानीय नेतृत्व के पास रहें। इसके अलावा, स्थानीय लोग छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त परिषदें प्रदान करती है, जिससे भूमि, संसाधन और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा होती है। लद्दाख के प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इसी तरह की व्यवस्था यहां भी लागू होनी चाहिए, ताकि उनकी पहचान, जमीन और पारंपरिक अधिकार सुरक्षित रहें।

इसके साथ ही पर्यावरणीय और विकास से जुड़ी चिंताएं भी आंदोलन के केंद्र में हैं। तेजी से बढ़ते पर्यटन, रक्षा तैनाती और अनियोजित विकास परियोजनाओं के कारण स्थानीय समुदायों को खतरा महसूस हो रहा है। उनका कहना है कि बाहरी दबाव से उनकी जमीन और संसाधनों पर अधिकार कमजोर हो रहे हैं। हालांकि, हिंसा के बाद यह भी सवाल उठ रहा है कि भीड़ में शामिल कुछ तत्वों ने जानबूझकर स्थिति को बिगाड़ा।

प्रशासन की ओर से हालात संभालने के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं और दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया गया है। वहीं केंद्र सरकार ने स्थानीय संगठनों और प्रतिनिधियों के साथ उच्चस्तरीय वार्ता की प्रक्रिया शुरू करने का संकेत दिया है। जानकारों का मानना है कि समस्या का समाधान केवल सुरक्षा बलों की सख्ती से नहीं निकलेगा, बल्कि संवैधानिक विकल्पों, पारदर्शी संवाद और स्थानीय जनता की सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय चिंताओं को संबोधित करने से ही संभव होगा। फिलहाल पूरा इलाका तनाव में है और आने वाले दिनों में वार्ता और प्रशासनिक कदम ही तय करेंगे कि हालात सामान्य होंगे या और जटिल।

Leave a Comment

और पढ़ें