सी.पी. राधाकृष्णन: छात्र आंदोलन से उपराष्ट्रपति तक का सफर

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भारत के नए उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित चंद्रपुरम पोंनुसामी (सी.पी.) राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर लंबा और विविधताओं से भरा रहा है। छात्र जीवन में सामाजिक गतिविधियों से जुड़ाव से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने तक उन्होंने अपनी पहचान बनाई। 9 सितंबर 2025 को NDA के उम्मीदवार के तौर पर हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में उनकी जीत ने उन्हें देश के उच्च संवैधानिक पद पर पहुँचा दिया। यह चुनाव गोपनीय मतगणना से संपन्न हुआ और इसमें उन्हें स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ।

राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुप्पुर क्षेत्र में हुआ। छात्र जीवन से ही वे आंदोलनों और सामाजिक कार्यों से जुड़े और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। 1970 के दशक में उन्होंने जनसंघ से राजनीतिक सक्रियता की शुरुआत की और 1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से निरंतर पार्टी संगठन से जुड़े रहे। उनकी मेहनत और संगठनात्मक क्षमता ने उन्हें जल्दी ही पार्टी की मुख्यधारा में ला खड़ा किया।

राजनीतिक करियर में उनकी सबसे बड़ी पहचान 1998 और 1999 में कोयम्बतूर से दो बार लोकसभा सांसद बनने के रूप में रही। कोयम्बतूर क्षेत्र में बीजेपी को मजबूत आधार दिलाने में उनका योगदान अहम रहा। बाद में वे तमिलनाडु बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने और दक्षिण भारत में पार्टी के विस्तार के लिए लगातार सक्रिय भूमिका निभाते रहे।

संगठनात्मक कार्यों के साथ-साथ उन्हें संवैधानिक जिम्मेदारियाँ भी मिलीं। 2023 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके अलावा उन्होंने तेलंगाना और पुडुचेरी का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला। जुलाई 2024 में वे महाराष्ट्र के राज्यपाल बने। इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक अनुभव और संवैधानिक पद पर कार्य करने का महत्वपूर्ण अनुभव हासिल किया।

सी.पी. राधाकृष्णन की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी और मिलनसार छवि मानी जाती है। राजनीतिक विश्लेषक उन्हें ‘अजातशत्रु’ कहकर पुकारते हैं, क्योंकि विरोधियों के साथ भी वे सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को विभिन्न वर्गों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।

उनकी जीत भारतीय राजनीति में कई मायनों में अहम है। उपराष्ट्रपति के रूप में अब वे राज्यसभा के सभापति की भूमिका निभाएंगे। संसद के सुचारु संचालन और विपक्ष-सरकार के बीच संवाद स्थापित करने में उनकी शैली निर्णायक साबित हो सकती है। उनके संगठनात्मक अनुभव, लोकसभा और राज्यपाल के कार्यकाल ने उन्हें इस भूमिका के लिए एक परिपक्व और संतुलित नेता बनाया है।

सी.पी. राधाकृष्णन का सफर इस बात का उदाहरण है कि छात्र आंदोलनों और सामाजिक कार्यों से शुरू हुआ जीवन कैसे संगठन, राजनीति और संवैधानिक पदों के अनुभव के जरिए देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों तक ले जा सकता है। उनकी सादगी, विनम्रता और सुलभता उन्हें उपराष्ट्रपति के रूप में एक अलग पहचान दिला सकती है।

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