प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे हैं। वे 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तटीय नगर टियानजिन में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। इस सम्मेलन को भारत और चीन सहित कई देशों के लिए सामरिक और कूटनीतिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है।
सात साल बाद चीन यात्रा
यह प्रधानमंत्री मोदी की चीन की पहली आधिकारिक यात्रा है, जो लगभग सात साल बाद हो रही है। भारत-चीन के बीच पिछले वर्षों में सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों में तनाव देखने को मिला है। ऐसे में मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच संवाद और तनाव प्रबंधन की दिशा में एक सकारात्मक संकेत मानी जा रही है।
SCO सम्मेलन का महत्व
SCO का यह 25वां शिखर सम्मेलन है, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समेत कई अन्य शीर्ष नेता हिस्सा ले रहे हैं। सम्मेलन के एजेंडे में क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, ऊर्जा, व्यापार और स्थिरता से जुड़े मुद्दे प्रमुख रहेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत इस मंच का उपयोग अपने बहुआयामी हितों को आगे बढ़ाने और पड़ोसी देशों के साथ सहयोग को मजबूत करने में कर सकता है।
द्विपक्षीय मुलाकातों की संभावना
सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होने की संभावना है। दोनों नेताओं के बीच यह बैठक अगर होती है तो सीमा विवाद, व्यापारिक सहयोग और रणनीतिक विश्वास बढ़ाने जैसे विषयों पर चर्चा हो सकती है। इसके अलावा मोदी की मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य क्षेत्रीय नेताओं से भी संभव है। यह मुलाकातें भारत की अंतरराष्ट्रीय रणनीति और कूटनीतिक संतुलन को नई दिशा दे सकती हैं।
भारत के लिए प्रमुख एजेंडा
भारत इस सम्मेलन में मुख्य रूप से निम्न बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकता है:
सीमा स्थिरता और विश्वास बहाली: हालिया सीमा विवादों के बाद शांति और स्थिरता की आवश्यकता।
आर्थिक सहयोग: ऊर्जा, निवेश और व्यापारिक साझेदारी पर बल।
बहुपक्षीय सुरक्षा: SCO के तहत आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों पर साझा रणनीति।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब वैश्विक स्तर पर नए शक्ति संतुलन उभर रहे हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों की नीतियों के बीच एशियाई देशों के बीच सहयोग का महत्व और बढ़ गया है। SCO एक ऐसा मंच है जहाँ भारत अपनी स्वतंत्र कूटनीति और क्षेत्रीय नेतृत्व की झलक दिखा सकता है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा केवल एक औपचारिक सम्मेलन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं और वैश्विक संतुलन में उसकी स्थिति को दर्शाने वाला कदम है। यह देखना दिलचस्प होगा कि SCO शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका किस तरह आगे बढ़ती है और द्विपक्षीय मुलाकातों के जरिए भारत-चीन संबंधों में क्या नया मोड़ आता है।
