नई दिल्ली। भारत और रूस के बीच कूटनीतिक संपर्कों की रफ़्तार तेज़ हो गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के हालिया मास्को दौरे के बाद अब विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी इस माह रूस जा रहे हैं। माना जा रहा है कि जयशंकर 20-21 अगस्त को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात करेंगे। इस यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना, मौजूदा वैश्विक तनावों के बीच ऊर्जा और रक्षा साझेदारी को नया आयाम देना है।
अमेरिकी टैरिफ विवाद के बीच अहम कूटनीतिक कदम
यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और टैरिफ को लेकर तनाव बना हुआ है। वॉशिंगटन की हालिया टैरिफ नीतियों ने वैश्विक बाज़ार और सप्लाई चेन को प्रभावित किया है, जिसका असर भारत पर भी पड़ सकता है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जयशंकर की यह यात्रा भारत की ‘संतुलित विदेश नीति’ को बनाए रखने और वैकल्पिक आर्थिक-ऊर्जा साझेदारियों को मज़बूत करने का संकेत है।
डोभाल की यात्रा ने रखी जमीन
पिछले सप्ताह NSA अजीत डोभाल ने मास्को में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समेत शीर्ष रूसी नेतृत्व से मुलाकात की थी। इस दौरान ऊर्जा आपूर्ति, रक्षा तकनीक और वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा हुई। जयशंकर की यात्रा को इन वार्ताओं का अगला चरण माना जा रहा है, जिसमें नीतिगत स्तर पर फैसले और औपचारिक समझौते संभव हैं।
मुलाकात में ये मुद्दे रहेंगे केंद्र में
जयशंकर और लावरोव के बीच वार्ता में कई अहम विषय शामिल होंगे—
1. ऊर्जा आपूर्ति और तेल आयात: रूस से कच्चे तेल की निरंतर और स्थिर आपूर्ति पर स्पष्टता।
2. रक्षा सहयोग: हथियार खरीद, संयुक्त उत्पादन और तकनीकी सहयोग पर चर्चा।
3. व्यापार और निवेश: द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और भुगतान प्रणाली को सुचारू बनाने के प्रयास।
4. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग: ब्रिक्स, एससीओ जैसे संगठनों में साझा रणनीति।
5. भविष्य के उच्च-स्तरीय दौरे: पुतिन के संभावित भारत दौरे की तैयारी।
भारत-रूस संबंधों के लिए रणनीतिक महत्व
भारत लंबे समय से रूस को ऊर्जा, रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्रों में भरोसेमंद साझेदार मानता आया है। यूक्रेन संघर्ष के बाद पश्चिमी देशों के साथ रूस के तनावपूर्ण रिश्तों के बीच भारत का संतुलित रुख दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाओं को बरकरार रखे हुए है।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मानते हैं कि यह दौरा सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मौजूदा भू-राजनीतिक समीकरणों में भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगा। अमेरिकी टैरिफ नीतियों और वैश्विक व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि में रूस के साथ साझेदारी भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा क्षमताओं को बनाए रखने का अहम जरिया हो सकती है।
