नई दिल्ली, 12 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि जिन कैदियों ने अपनी निर्धारित सजा पूरी कर ली है, उन्हें बिना किसी देरी के रिहा किया जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में किसी अतिरिक्त आदेश की आवश्यकता नहीं है, और यदि किसी कैदी को केवल प्रशासनिक या प्रक्रियात्मक देरी के कारण जेल में रखा जाता है, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस मुद्दे को “मानवाधिकार से जुड़ा गंभीर मामला” बताते हुए कहा कि राज्य सरकारें और जेल प्रशासन यह सुनिश्चित करें कि कोई भी व्यक्ति अपनी तय सजा से एक दिन भी ज्यादा जेल में न रहे। अदालत ने गृह सचिवों को आदेश दिया कि वे तुरन्त जेलों के रिकॉर्ड की समीक्षा करें, और उन कैदियों की सूची बनाएं जिनकी सजा समाप्त हो चुकी है, साथ ही उनकी रिहाई की प्रक्रिया तुरंत शुरू करें।
पृष्ठभूमि और अदालत की चिंता
हाल के वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां कैदियों को सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रखा गया। कभी अदालत के आदेश की गलत व्याख्या, तो कभी प्रशासनिक फाइलों के अटकने से निर्दोष या सजा पूरी कर चुके लोग महीनों तक जेल में पड़े रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह न केवल संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है, बल्कि यह “न्याय में देरी” का उदाहरण भी है, जिससे पीड़ितों के परिवारों को अनावश्यक मानसिक और सामाजिक पीड़ा झेलनी पड़ती है।
आदेश के मुख्य बिंदु:
तत्काल रिहाई: सजा पूरी कर चुके कैदियों को तुरंत रिहा किया जाए।
अन्य मामलों की जांच: यदि कोई कैदी किसी अन्य लंबित मुकदमे में वांछित है, तभी उसकी रिहाई रोकी जा सकती है।
रिकॉर्ड की समीक्षा: सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने जेल रिकॉर्ड की विस्तृत जांच कर रिपोर्ट पेश करनी होगी।
जिम्मेदारी तय होगी: यदि कोई कैदी सजा पूरी होने के बावजूद जेल में पाया गया, तो संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी।
मानवाधिकार की सुरक्षा: कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह आदेश कैदियों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए है।
आदेश का प्रभाव
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश जेलों में भीड़ कम करने में मदद करेगा। भारत में पहले से ही अधिकांश जेलें अपनी क्षमता से ज्यादा भरी हुई हैं। इस फैसले से न केवल जेल प्रशासन पर दबाव कम होगा, बल्कि उन परिवारों को भी राहत मिलेगी जिनके प्रियजन सजा पूरी करने के बाद भी रिहाई का इंतजार कर रहे हैं।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी राज्य को रिहाई में वैधानिक या तकनीकी अड़चन का सामना करना पड़े, तो वह तुरंत कारण सहित रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश करे।
